ट्रेडिंग में कन्ट्रेरियन एप्रोच : शेयर बाजार में मोदी की गारंटी नहीं मिला करती

वणिक डॉट इन वेबसाइट का नाम हिन्दी में है पर यहाँ हमारी प्रतिबद्धता हिन्दी से न होकर वणिक कर्म से है. यही कारण है कि हम ऐसे बहुत से शब्दों को व्यवहार में लेते हैं जो शब्द सामान्य व्यवहार में पहले से उपस्थित हैं. वैसे भी दुनिया की हर भाषा की ताकत इसी से बनती है कि वह दुसरी भाषा के कितने शब्दों को अपने में समाहित कर पाती है. इस स्पष्टिकरण के बाद आइए मूल विषय पर बात करें.

अक्सर सुजान लोग बताते हैं कि ट्रेडिंग या इन्वेस्टिंग में भी कन्ट्रेरियन एप्रोच लाभ का सौदा बन सकता है. पर यह शायद ही कहीं बताया जाता है कि कन्ट्रेरियन एप्रोच का उपयोग कब, कहाँ, किस तरह से, और कैसे किया जा सकता है.

हम सभी जानते हैं कि किसी भी वस्तु का सौदा तभी हो सकता है जव खरीदने वाला और बेचने वाला उसकी कीमत पर सहमत हो जाते हैं. कीमत का फैसला दोनों की जरुरतों और उद्देश्यों पर निर्भर करता है. शेयर बाजार में भी यही होता है. आप जिस भी कीमत पर खरीदना चाहते हों उस कीमत पर बेचने वाला भी होना चाहिये. अगर आप किसी सोच के तहत सोचते हैं कि उस शेयर का दाम आगे बढ़ने वाला है, तो क्या आप इस पर भी सोचते हैं कभी कि तब उसको इस दाम पर कोई बेच क्यों रहा है ?जब आपको इस प्रश्न का उत्तर समझ में आ जाता है तो ट्रेडिंग का पहला पाठ आप पढ़ लेते हैं. खरीदने वाले के पास एक ही कारण होता है कि उसे लगता है कि इसका दाम बढ़ने वाला है. अगर आपको ऐसा नहीं लगता तो आप उसे कभी खरीदियेगा ही नहीं.

पर बेचने वाले के पास ऐसे कई कारण होते हैं. जैसे कि हो सकता है कि उसने वह शेयर पहले से, काफी कम दाम में खरीद रखा है और उसको लगता है कि पर्याप्त लाभ उठाया जा चुका है. फिर इस पर्याप्त लाभ की परिभाषा हर आदमी के लिए अलग होती है. उसको यह लग सकता है कि अब इसका दाम बहुत ज्यादा नहीं बढ़ने वाला तब भी वह उसे अभी बेच देना चाहता है ताकि जब आगे चल कर उसका दाम गिरे तब वह फिर कम कीमत में उसे खरीद ले.

हम लोग कई बार इन्वेस्टिंग और ट्रेडिंग के बारे में दिग्भ्रमित होते हैं. जान लीजिए कि हर इन्वेस्टर ट्रेडर भी होता है पर ट्रेडर इन्वेस्टर नहीं होता. इन्वेस्टर का उद्देश्य संपति अर्जित करना होता है जबकि ट्रेडर का उद्देश्य आय अर्जित करने का होता है. उसके लिए वह उसी तरह है जैसे तनखाह पर काम करने वाले लोग या फीस लेकर काम करने वाले लोगों के लिए तनखाह या फीस होती है. ट्रेडिंग से हुई आय का उपयोग या त वह अपनी दैनिक जरुरतों के लिए करता है या फिर शेष आय को निवेशित के लिए.

पर एक बात की गाँठ बाँध लीजिए कि ट्रेडर और इन्वेस्टर के लक्ष्य पर अलग अलग कंपनियां होती हैं. इन्वेस्टर लांग टर्म ट्रेडर होता है. उसका ट्रेड कुछ महीनों का, कुछ सालों का, या फिर हमेशा के लिए हुआ करता है. इसलिए वह उस कंपनी को चुनता है जो बढ़िया काम करती है, आगे भी उसके बने और बढ़ते रहने की पूरी संभावना है और उसका मौजूदा दाम उसकी वास्तविक कीमत से कम है. इस वेबसाइट पर हम इन्वेस्टिंग की चरचा नहीं करते. क्योंकि इन्वेस्टिंग पूंजी वालों का काम है. यहाँ हमारी चर्चायें उन लोगों के लिए होती है जो आय की तलाश में हैं. वह आय प्राथमिक आय भी हो सकती है पर अधिकतर मामलों में अतिरिक्त आय. सरकारी नौकरी करने वालौं की ऊपरी आय और ट्रेडर की इस अतिरिक्त आय में मूल अन्तर यह होता है कि ऊपरी आय वैधानिक नहीं होती पर अतिरिक्त आय वैधानिक हुआ करती है.

सो स्वाभाविक है कि ट्रेडर उस कंपनी के शेयर को ट्रेड करना चाहेगा जिसे बहुत सारे लोग, बहुत बड़ी मात्रा में खरीद-बेच रहे होते हैं. अगर किसी शेयर की लिक्विडिटी नहीं है तो उसमें ट्रेडिंग करना व्यर्थ है.

ट्रेडर फिर कई तरह के हो सकते हैं. एक डे-ट्रेडर्स जो किसी भी सौदा का निपटान उसी दिन कर देते हैं. या फिर स्विंग ट्रेडर जो दाम गिरने पर खरीदते हैं और दाम चढ़ने पर बेच देते हैं. दाम चढ़ने पर बेच देने वाले और दाम गिरने पर खरीद लेने वाले भी ट्रेटर ही होते हैं पर यह बड़ी पूंजी वालों के लिए होता है. डे-ट्रेडर्स में ही स्काल्पर भी होते हैं जो चन्द मिनटों या सेकण्ड में बहुत बड़ी मात्रा में शेयर खरीद-बेच करते हैं.

एक बात और ध्यान में रखने योग्य है कि किसी भी काम में लाभ का अनुपात उसमें होने वाले जोखिम पर निर्भर करती है. अधिका जोखिम वाला काम कमाई अधिक कराता है ठीक उसी तरह अधिक कमाई तभी होती है जब उसमें जोखिम भी अधिक होता है. बिना जोखिम के लाभ हो ही नहीं सकता और लाभ कमाना है तो जोखिम उठाना ही पड़ेगा.

शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी की सलाह हमेशा डेरिवेटिव ट्रेडिंग के खिलाफ रहती है क्योंकि ट्रेडिंग में अधिकतर लोगों को नुकसान उठाना पड़ता है. यही कारण है कि हर ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर सबसे पहले यही चेतावनी मिलती है कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग बहुत जोखिम वाला काम है. यह ठीक उसी तरह है जैसे सिगरेट की हर डिब्बी पर छपा रहता है कि ध्रुमपान स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होता है. इसलिए न तो हम किसी को ध्रुमपान करने की सलाह देते हैं न ट्रेडिंग करने की. पर अगर सब कुछ जानने-समझने के बाद भी आप ट्रेडिंग करना ही चाहते हैंं तो हम चाहेंगे कि आपको कुछ तरीके बताएं जिसमें लाभ होने की थोड़ी बहुत गुंजाइश हो !

यह बात दुनिया के सारे चतुर-सुजानों की समझ में नहीं आती कि हिन्दुस्तान में डेरिवेटिव ट्रेडिंग और खास कर के आप्शन ट्रेडिंग इतनी बड़ी मात्रा में क्यों होता है. उनके विचार से आप्शन ट्रेडिंग कोई आप्शन नहीं होना चाहिए पर आप्शन ट्रेड करने वालों के लिए इसका कोई और आप्शन भी नहीं दिखता.

एक शायर की बात दुहराएं तो –
यह इश्क (ट्रेडिंग का) नहीं आसां,
बस इतना समझ लीजे,
इक आग का दरिया है
और डूब के जाना है !

आप्शन ट्रेडिंग के बारे में बताया जाता है कि अधिकतर आप्शन बायर्स – खरीदने वालों – को नुकसान ही होता है. और फिर भी आम ट्रेडर आप्शन बाय ही करता है क्योंकि इसमें पूंजी कम लगती है. उसे यह भी बताया गया होता है कि आप्शन बेचने वालों कि होने वाले संभावित नुकसान की कोई सीमा नहीं होती और लाभ सीमित होता है उसी मात्रा पर जितने पर उसने आप्शन बेचा होता है. पर इसके अतिरिक्त आप्शन खरीदने वालों की नुकसान की सीमा वही रहती है जितना प्रीमियम देकर उसने आप्शन खरीदा होता है पर लाभ की कोई सीमा नहीं होती. और यह विरोधाभास इसी कारण स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर आप्शन सेलर्स फायदे में और आप्शन बायर्स नुकसान में रहते है.

जानता हूं कि यह लेख बहुत ही लंबा होता जा रहा है पर कन्ट्रेरियन ट्रेडिंग की बात करने से पहले आपको इतना कुछ बताना भी जरूरी ही था. अब बस एक छोटी सी बात और बतानी है कि शेयर मूल्यों की एक खासियत होती है कि वह कभी भी एक रेखा में ऊपर या नीचे नहीं जाता. जब भी जाता है लहरों में – कभी बहुत छोटी लहरों में तो कभी बड़ी-बड़ी लहरों में. जब ऊपर जाता है तो कुछ देर बाद सुस्ताने लगता है और अपनी मध्य रेखा की तरफ नीचे आने लगता है. और जब नीचे जाता है तब भी थोड़ी देर बाद गिरावट थमने लगती है और दाम फिर मध्यरेखा की तरफ बढ़ने लगता है. यह मध्यरेखा ही कई तरह के संकेतकों – इन्डिकेटर्स – का आधार होती है.

इतना जानने के बाद स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि कैसे हम भीड़ के उल्टा चल सकते हैं, यानी कन्ट्ररियन एप्रोच का उपयोग कर सकते हैं. आसान उत्तर तो यही हो सकता है कि जब दाम गिर रहे हों तब कॉल आप्शन खरीदा जाय और जब दाम चढ़ रहे हों तब पुट आप्शन ! पर क्या यह सचमुच उतना ही आसान है जितनी आसानी से यहाँ बताया जा रहा है ? बिल्कुल नहीं ! क्योंकि दाम जब गिर रहे होते हैं तब कॉल आप्शन के दाम भी गिरने लगते हैं और जब दाम जब चढ़ रहे होते हैं तब पुट आप्शन के दाम गिर रहे होते हैं.

यानी कि होगा यही कि गिरते दाम के समय खरीदे गए कॉल आप्शन का प्रीमियम भी गिरता जाएगा और चढ़ते दामों के समय पुट आप्शन का प्रीमियम भी गिरता जाएगा. उस हालत में तो कन्ट्रेरियन एप्रोच वालों का नुकसान ही होने वाला है. यह सच है पर पूरा सच नहीं.

आजु इस चर्चा को यहीं विराम देता हूं. अगर आपको यह चर्चा पसंद आई हो तो नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं कि आप सचमुच कन्ट्रेरियन एप्रोच के बारे में जानना चाहते हैं. अगर पर्याप्त पाठकों ने अपनी सहमति या इच्छा जताई तो अगली बार हम आपको एक ऐसा आसान तरीका बताएगें जिसमें आपको लाभ होने की संभावना हो सकती है.

याद रखिए – हानि-लाभ, जीवन-मरण, जस-अपजस विधि हाथ! ठीक इसी तरह लाभ या नुकसान शेयर बाजार की इच्छा पर निर्भर करता है. नुकसान की गारंटी मिलती है पर लाभ की सिर्फ उम्मीद ! मोदी की गारंटी का मुकाबला कोई नहीं कर सकता पर उम्मीद जगाने वाले बहुतों हैं. सोच-समझ कर चुनाव कर !